१३ अक्टूबर (लखनऊ) की गर्म दोपहर मल्हार होकर वीणा के तारों की तरह बज उठी, जब दशम राष्ट्रीय पुस्तक मेला मंच पर 'मुक्तिबोध साहित्य सम्मान-२०१२ ' से युवा साहित्यकार समीक्षक सुशीला पुरी को त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका 'रेवान्त' ने उनकी रचनाधर्मिता के लिए सम्मानित किया.
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि श्री नरेश सक्सेना ने की. उपन्यासकार श्री प्रदीप सौरभ, कवि श्री सुधीर सक्सेना, श्री सुधाकर ‘अदीब’ एवं विजय चटर्जी मंच पर आसीन थे. श्री नरेश सक्सेना जी ने उत्तरीय पहनाया, प्रदीप सौरभ जी ने स्मृति चिह्न भेंट किया तथा श्री सुधीर सक्सेना जी एवं श्री सुधाकर ‘अदीब’ जी ने ‘रेवान्त’ की ओर से ११०००/- की धनराशि का चेक प्रदान कर सुशीला जी को सम्मानित किया. नरेश सक्सेना उत्तरप्रदेश के अनेकानेक साहित्यिक सम्मान समारोहों और सम्मानों की चर्चा करते हुए अनीता श्रीवास्तव एवं उनकी चयन समिति और साहित्यिक पत्रिका रेवान्त को विशेष बधाई देते हुए कहा मुक्तिबोध के नाम पर अभी तक कोई सम्मान नहीं था. रेवांत ने इसे अपने नाम के साथ जोड़ कर लखनऊ को भी गरिमा प्रदान की है. सुशीला जी की कर्मठता को रेखांकित करते हुए नरेश जी ने बताया कि –“मेरी अभी एक पुस्तक आयी है. सुशीला जी ने उसमें काफी भागदौड़ की है. उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से मेरी कवितायेँ एकत्र कर उन्हें एक पुस्तक के रूप में संग्रहीत कर दिया है.
वीरेंद्र सारंग ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए ‘रेवान्त’ पत्रिका की संपादिका श्रीमती अनीता श्रीवास्तव से पुष्पगुच्छ प्रदान कर मंच पर आसीन सभी साहित्यशिल्पियों का स्वागत करने का और पत्रिका के सम्बन्ध में कुछ शब्द कहने का आग्रह किया. अनीता जी ने अपने वक्तव्य में कहा -“मुक्तिबोध नाम स्वयं में ही इतना गरिमामयी है कि जो भी इसकी छाया में आया उसने स्वयं को गौरवान्वित अनुभूत किया.” उन्होंने सभी गणमान्य अतिथियों, उपस्थित जनसमुदाय एवं रेवान्त के पाठकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा – “आप सभी के सहयोग से यह पत्रिका युवावस्था की ओर बढ़ रही है, आप धन्यवाद के पात्र हैं .”
सुशीला जी की कविताओं का पाठ रंगकर्मी विजय चटर्जी ने किया. “याद ”, “मन करता है ”, “आवाज़- एक बूँद ” एवं “प्रेम ” भावों के अनुसार स्वरों का आरोह-अवरोह उनके द्वारा किये गए काव्य पाठ की विशेषता रही.
सुशीला पुरी ने मुक्तिबोध सम्मान प्राप्त करने के पश्चात अपने वक्तव्य में कहा कि “यह सम्मान मेरे लिए आकाश की तरह है और कविता माँ की गोद की तरह है. जब कभी भी निराशा, उदासी, या थकान की अनुभूति होती है, मैं छोटी बच्ची की तरह वहाँ सो जाना चाहती हूँ. दुनिया को समग्रता में देख पाने की मुंडेर है कविता मेरे लिए. कविता मृतप्राय विधा है, इसका मैं आतंरिक हृदय से विरोध करती हूँ. कविता हमेशा रही है, और रहेगी. मंच पर उपस्थित सभी गणमान्य अतिथियों का आभार व्यक्त करती हूँ. सभी ने मुझे प्रोत्साहित किया है. नरेश जी को मैं विशेष धन्यवाद देती हूँ कि उन्होंने समय-समय पर मेरा मार्गदर्शन किया है. मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है, और आज भी सीख रही हूँ .” फिर उन्होंने अपनी कविताओं का पाठ किया
डॉ० सुधीर सक्सेना जी ने कहा कि सुशीला पुरी जी की कविताओं में ताजगी है,टटकापन है. उनकी कवितायेँ रचनाकारों को आकर्षित करती हैं और अलग नज़र आती हैं. वे अपनी कविताओं में रोज़मर्रा की छोटी छोटी बातों का समावेश करके उन्हें खूबसूरत, परिचित व आत्मीय बनाती हैं. उन्होंने यह भी बताया कि उनकी पत्रिका ‘दुनिया- इन दिनों’ में सुशीला पुरी जी के द्वारा लिखा जाने वाला स्तंभ ‘बुकशेल्फ ’ सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है. आयु से युवा कवयित्री सुशीला जी की कवितायेँ वयस्क हैं तथा उनकी अभिव्यक्ति प्रौढ़ है. सुधीर जी ने गजानन माधव मुक्तिबोध जी के बारे में भी बताया- उनका कहना था कि बातचीत भी कविताओं के माध्यम से होनी चाहिए. उन्होंने रेवान्त परिवार एवं सुशीला पुरी जी को हार्दिक बधाई एवं आत्मिक शुभकामनाएं दी .