मोनालिसा
की आँखें
सुमन केशरी के
नये कविता-संग्रह ‘मोनालिसा की आँखे‘ कविता संग्रह का लोकार्पण इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में विचार न्यास के
तत्वाधान ने 25 मई 2013 की
शाम कवि श्री अशोक वाजपेयी की अध्यक्षता में और सांसद श्री देवी प्रसाद त्रिपाठी
के वक्तव्य के बीच संपन्न हुआ. समारोह के दौरान हाल खचाखच भरा था. उत्सुक साहित्य
प्रेमियों की अधिकता होने के कारण लोगों को हाल के बाहर भी खड़ा होना पड़ा.
कार्यक्रम का संचालन श्री सुशील सिद्धार्थ ने किया. यह संग्रह राजकमल प्रकाशन से
छपा है.
कार्यक्रम का
आरंभ सबका स्वागत करते हुए विचार न्यास से जुड़े श्री मनीष ने चैधरी ने किया. उसके
बाद सुशील सिद्धार्थ ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए सबसे पहले सुमन केशरी को अपने
नये कविता संग्रह ‘मोनालिसा की आंखें‘ में से कुछ कविताएं सुनाने का आग्रह किया और यह ध्यान दिलाया कि आज
बुद्ध पूर्णिमा है और इस संग्रह में बुद्ध पर भी एक कविता है जिसका शीर्षक है ‘कोई नहीं जानता‘. इस कविता में देखा जाना चाहिए कि बुद्ध को देखने की स्त्री और पुरूष
की दृष्टि में क्या भिन्नता है. बुद्ध पर सुमन जी की यह कविता स्त्री मन की कविता
है.
सर्वप्रथम सुमन
केशरी ने श्री सैयद हैदर रज़ा की रचनात्मकता और उनसे प्राप्त प्रेरणा को
प्रणाम किया फिर संग्रह की कुछ कविताएं सुनाई. उनकी कविता विचारणीय और अर्थपूर्ण
है तथा प्रस्तुति आत्मीय और मधुर. लोगों ने कवितायें और प्रस्तुति दोनों की सराहना
की. कुछ कविताएं खासकर उसके मन में उतरना, बा, चिड़िया का बच्चा बोलाए लौटाती हूँ तुम्हेंए मछली और औरत, की काफी प्रशंसा हुई. शायद यह कविता का ही आकर्षण रहा होगा कि वहाँ
से लौटते समय लगभग नब्बे प्रतिशत लोगों के हाथों में पुस्तक की एक प्रति मौजूद थी.
सुमन जी ने काव्य रचना के संदर्भ में कहा कि मैं कोशिश करती हूँ कि औरत को उसकी
पूर्णता में देखूँ जहाँ वो अनेकों कष्ट उठाती है. उसके साथ उसके भीतर उतरने की
कोशिश करती हूँ यह परकाया प्रवेश की तरह है. परकाया प्रवेश जितना रचनाकार के लिए
ज़रूरी है उतना ही पाठक के लिए भी. शायद लेखिका की यही कोशिश पाठक को एक आत्मीय
समाज में ले जाने में सक्षम है.
मुख्य वक्ता देवी
प्रसाद त्रिपाठी ने अपना वक्तत्व इस संग्रह की अंतिम कविता ‘औरत‘ को प्रतिनिधि कविता मानते हुए
प्रांरम्भ किया और कहा कि यह कविता विश्व स्तरीय कविता के बरक्स रखी और पढ़ी जा
सकती है. यह एक अद्भुत कविता है तथा जीवन-सत्य के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है.
उन्होंने इस संदर्भ में रूसी स्त्री कवि ‘अन्ना
अक्खमातोवा‘ और ‘मारिना
स्विताएवा‘ की कविताओं को रेखांकित किया. ‘औरत‘ कविता में चित्रात्मकता होने की बात की
और कहा कि ‘चित्रों में कविता झलकती है और कविताओं में
चित्र.‘
‘ज्योति-दामिनी को याद करते हुए‘ (दिल्ली में 16
दिसम्बर को हुए सामूहिक बलात्कार की शिकार उस वीर बाला पर लिखी कविता) को याद करते
हुए देवी प्रसाद जी ने कहा कि कई अर्थों में स्त्री का जीवन दूसरों के लिए खत्म
होता है. इस कविता में वही दुख, अवसाद और प्रतिरोध दिखाई देता है. ‘एक दिन माँ‘ कविता में बचपन की तरफ लौटने की
ख्वाहिश है. जहाँ बिटिया माँ के सानिध्य में फिर लौटना चाहती है. इस तरह के
निर्दोष क्षणों में जाने की इच्छा एक स्त्री लेखक ही सहजता से प्राप्त कर सकती है.
उन्होंने कहा-मृत्यु पर आधारित ‘मणिकार्णिका‘ सीरिज
की चैथी कविता अतीत ही नहीं प्रोगैतिहासिक अतीत पर लिखी गई कविता है जो पौराणिक
कथा (हरिश्चन्द्र) को नये संदर्भों में प्रकट करती है. सुमन केशरी की मिथकीय
कविताओं में अतीत के प्रति आलोचनात्मक दृष्टि है. देवी प्रसाद त्रिपाठी ने सुमन
केशरी के पहले कविता संग्रह ‘याज्ञवल्क्य से बहस‘ की कुछ कविताओं का भी उल्लेख किया. खासतौर से द्रौपदी, सीता, राधा, बा,
सत्यवान से हुई मुलाकात, फौज़ी आदि. इस
दौरान उन्होंने मशहुर कवि रघुवीर सहाय की कविताओं को याद किया.
उन्होंने
रेखांकित किया कि फौज़ी जैसे विषय पर इतनी ‘शांत‘
कविता हिन्दी या संभवतः अन्य भारतीय भाषाओं में भी नहीं है. उन्होंने
यह भी कहा कि जो स्त्री द्रौपदी, सीता, माधवी
पर कविता लिखेगी उसकी मुलाकात सत्यवान से होना लाज़िमी है. ये सब मिथकीय चरित्र
सुमन जी की कविताओं में नये संदर्भ में उद्घाटित होते हैं-प्रश्न और जिज्ञासा करते
हुए.
देवी प्रसाद
त्रिपाठी ने कविता के संदर्भ में दो महत्वपूर्ण बातों को रेखांकित किया. एक तो
कविता में ‘मौन‘ , वह अनकहा अर्थ कविता का सबसे सशक्त पक्ष है. दूसरा ‘सरलता‘ है जो आज हमारे ‘समाज‘
और ‘अभिव्यक्ति‘ से
गायब होती जा रही है. सरलता का विन्यास करना सबसे कठिन कार्य है. यह दोनों ही
विशेषतायें सुमन केशरी की कविताओं में मौजूद है. अपने वक्तत्व का अंत उन्होंने
राष्ट्रपति ओबामा के शपथग्रहण समारोह में ‘एलिजाबेथ
एलेक्जेण्डर‘ द्वारा पढ़ी गयी कविता ‘प्राइस साग फार दि डे‘ का पाठ किया.
उनका वक्तत्व काफी रोचक और प्रेरणादायक रहा. इस संग्रह के शीर्षक अर्थात ‘मोनालिसा की आंखे‘ के संबंध में त्रिपाठी जी मानते है कि ‘जीवन, मृत्यु, शयन,
प्रेम, एकांत और वियोग‘ इन
सबका प्रतीक हैं ‘आँखें‘ और
मोनालिसा की आँखें ‘उत्सुक नैना‘ है. वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अशोक वाजपेयी जी को इसका
शीर्षक नाटकीयता से ओत-प्रोत लगा लेकिन उन्होंने इसे रेखांकित किया कि इस संग्रह
की कविताएँ नाटकीयता से बची हुई हैं. अशोक वाजपेयी को लगता है कि आज कविता में इस
कदर उलझाव है और ये उलझाव भाषा के प्रति असावधानी से, शिल्प
के प्रति असजगता इत्यादि से आता है. इसके पीछे दृष्टि की शिथिलता भी नज़र आती है. इस
संग्रह में व्यर्थ के उलझाव नहीं है और सुमन केशरी भाषा एवं शिल्प के प्रति सावधान
हैं. वाजपेयी जी ने इस संग्रह की कविताओं को अपने गोत्र की कवितायें कहा है- माँ,
पिता, चिड़िया, परिवार
आदि जैसे ‘पिछड़े‘ विषयों पर आज
लोग कविताएँ नहीं लिखते हैं. आजकल लोग सामाजिक संघर्ष और क्रांति में लगे हैं पर
यह जानकर थोड़ी आश्वस्ति हुई कि सम्बन्ध ‘माँ, पिता, चिड़िया‘ आदि
पर भी रचना की संभावना अभी बची है. इस संग्रह की कविताओं में एक प्रीतिकर निरंतरता
है, जिस निरंतरता को हम अक्सर अलक्षित करते हैं
लेकिन यह निरंतरता आवश्यक होती है.
महत्वपूर्ण है. कविता में जो कहा नहीं गया है फिर भी यदि हम उसे समझते हैं
महत्वपूर्ण है. कविता में जो कहा नहीं गया है फिर भी यदि हम उसे समझते हैं
उल्लेखनीय है कि समारोह इतना
विचारपूर्ण एवं रोचक था कि श्री सैयद हैदर रज़ा अंत तक बैठे रहे. दिलीप सिमीयन, ओम थानवी,
निर्मला जैन, रेखा
अवस्थी, रवीन्द्र कालिया, ममता कालिया, आलोक जैन, विष्णु नागर, अर्चना वर्मा, रवीन्द्र त्रिपाठी, अपूर्वा नंद, मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, प्रियदर्शन, पंकज सिंह, मनीषा कुलश्रेष्ठ, विपिन चैधरी,
सईद अयूब, निशांत आदि के साथ ही अनेक युवा लेखक, कवि,
पत्रकार तथा समाज के अन्य तबके के कई महत्वपूर्ण लोग उपस्थित थे. अंत
में विचार न्यास के मनीष चैधरी ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया.
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सुधा रंजनी
सुधा रंजनी
snranjani@gmail.com