24 अगस्त 2013,लखनऊ
प्रख्यात् हिन्दी आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय के 73 वें
वर्ष में हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय
द्वारा 24 अगस्त 2013 को सम्मान समारोह एवं एक दिवसीय राष्ट्रीय
संगोष्टी का आयोजन किया गया. लखनऊ विश्वविद्यालय
के ऐतिहासिक मालवीय सभागार में पूर्वाह्न 11 बजे अतिथि-विद्रानों का हिन्दी-विभाग के शोधर्थियों द्वारा पुष्पगुच्छ देकर अभिनन्दन किया गया. प्रो. मैनेजर पाण्डेय के आलोचना कर्म पर शोधरत आकांक्षा सिंह ने स्वागत भाषण दिया
और पाण्डेय जी को उनके जन्म दिवस की अग्रिम बधाई भी दी. कार्यक्रम के संयोजक और पाण्डेय जी के शिष्य हिन्दी-विभाग में प्राध्यापक श्री रविकान्त जी ने शाल एंव
स्मृतिचिन्ह देकर पाण्डेय जी को सम्मानित किया. साथ ही हिन्दी-विभाग के शोधार्थी
आलोक यादव ने पाण्डेय जी के चित्रों का कोलाज भेट किया एंव विभाग के तमाम उत्साही शोधार्थियों
एंव विद्यार्थियों ने पुष्पगुच्छ, माल्यार्पण एंव स्मृति चिन्हों से पाण्डेय जी का स्वागत एंव सम्मान किया.
इस समारोह की अनुभूतियों को
संजोकर, कार्यक्रम के मुख्य आकर्षण प्रो. मैनेजर पाण्डेय जी ने गदगद होकर कहा कि ऐसा सम्मान
नज़ाकत और नफासत के शहर लखनऊ में ही सम्भव है. वे विद्यार्थियों के उत्साह और लगन से अभिभूत थे. लखनऊ के प्रति अपनी आत्मीयता का इज़हार करते हुए उन्होंने कहा कि 1857 के महासंग्राम
की सबसे लम्बी लड़ाई (दो वर्ष) लखनऊ में ही लड़ी गई, इसका नेतृत्व बेगम हज़रत महल ने किया था जो एक महिला ही थीं
और इतिहास में उनको बहुत कम महत्व मिला. उन्होंने बेगम हज़रत महल के योगदान पर कार्यक्रम आयोजित करने की अपील की. कार्यक्रम का संचालन करते हुए रविकांत ने पाण्डेय
जी की आलोचना दृष्टि को सूर-काव्य से
निर्मित बताया और साथ ही आलोचकीय दृष्टिकोण से पाण्डेय जी की आलोचना को ‘कल्चरल ट्रैडीशन‘ के तहत रखा. इस आयेजन में शैलेन्द्र सागर, शकील सिद्दीकी, कौशल किशोर आदि अनेक लेखक-साहित्यकार, पत्रकार, प्राध्यापक एंव गणमान्य व्यक्ति
तथा विद्यार्थी शामिल हुए. आलोक यादव
ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पाण्डेय जी के 74 वें जन्म दिन की अग्रिम बधाई देते
हुए अपनी भावांजलि बाबा नागार्जुन की इन पंक्तियों के साथ समर्पित की –
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य.
25 अगस्त 2013,
लखनऊ
मुक्तिबोध की लम्बी कविता ‘अंधेरे में’ के 50 साल पूरे होने पर जन संस्कृति मंच
और हिन्दी-विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में 25 अगस्त 2013 को एक
राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयेजन किया गया. लखनऊ विश्वविद्यालय के ए. पी. सेन सभागार में आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की
अध्यक्षता रवि भूषण ने की और मुखय वक्ता के रूप men प्रख्यात् आलोचक प्रो. मैनेजर पाण्डेय जी ने शिरकत की.
कार्यक्रम की शुरुवात शोध छात्र
योगेन्द्र कुमार सिंह द्वारा ‘अंधेरे में’
कविता के प्रमुख अंशों के पाठ से हुई. पाण्डेय जी ने ‘अंधेरे में’ कविता को
आज की परिस्थितियों में ज्यादा प्रासंगिक बताया. उन्होंने कहा -
यह अतीत से वर्तमान की यात्रा
है. यह वास्तविकता और सम्भावना की अभिव्यक्ति है. इसमें अनेक कलाओं एंव काव्य-रूपों का का उपयोग हुआ है. ‘ओ मेरे ---’ में प्रगीतात्मकता है और भारतीय समाज की नियति कि अभिव्यतिक्त
के करण इसका कलेवर महाकाव्यात्मक है. दर-असल यह सघन बौद्धिकता की कविता है, जिससे आलोचकों को कभी-कभी रहस्यात्मकता बोध भी होता है. ‘वह कौन’,
इस कविता का केन्द्रीय मुद्दा है. यह वास्तव में ज्ञान की चेतना का प्रतीक है और कविता में इसे पाने की प्रक्रिया
में जो कठिनाई, जटिलता और संगर्ष है,
उसी की अभिव्यक्ति है. इस क्रम में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना ने कहा कि इस कविता की मूल संवेदना, आजादी के बाद के मध्यवर्ग का संगर्ष है और कविता की लयात्मकता
को रेखांकित करते हुए कविता को अपना स्वर और सुर भी दिया. उन्होंने इस कविता को लय और गद्य दोनों की कविता बताते
हुए इसे ऊर्जा, गति और संघर्ष की कविता कहा. प्रणय कृष्ण ने ‘अंधेरे में’ कविता को सिर्फ मुक्तिबोध की ही नहीं
बल्कि अनेक लोगों की कविता बताया. यह कविता दृष्यों की गमिमान श्रृंखला है, इसे क्षण मे कैद नहीं किया जा सकता. रांची विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी-विभागाध्यक्ष रवि भूषण ने कहा कि यह राजनैतिक कविता है. नेहरू के भारत और मनमोहन के भारत की तुलना करते
हुए आर्थिक एंव राजनैतिक परिस्थितियों की पड़ताल की. डालर के मुकाबले गिरता रूपया और मौन मौनमोहन के दौर में यह कविता अधिक प्रासंगिक
है. ’ओ मेरे.........’ पंक्तियों की व्याख्या करते हुए रवि भूषण ने कहा कि यह कविता
मध्यवर्ग की घनघोर आलोचना करती है.संचालन, कवि चंद्रेशवर ने किया एंव आयोजक रविकांत द्वारा स्वागत भाषण किया गया. धन्यवाद ज्ञापन, जसम की लखनऊ - इकाई के
अध्यक्ष कौशन किशोर ने किया साथ ही गोष्ठी की समाप्ति पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय डा. रघुवंश के निधन पर 2 मिनट
का मौन रखा गया. इस अवसर पर ताहिरा हसन, रवीन्द्र वर्मा, रमेश दीक्षित,
वन्दना मिश्रा, नसीम साकेती, देवेन्द्र, सुभाष राय, मृदुला भारद्वाज,
शीला रोहिकर, गिरीश चंद्र श्रीवास्तव, आदि लेखक - विद्वान, प्राध्यापक एंव विद्यार्थी मौजूद रहे.
आलोक यादव