राजस्थान
लेखिका सम्मेलन - 2012
राजस्थान
साहित्य अकादमी और मोहनलाल सुखाड़िया विश्व विद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में
दिनांक 3 नवम्बर को उदयपुर में राजस्थान लेखिका सम्मेलन
का शुभारम्भ डा. कमला, महामहिम राज्यपाल, गुजरात के द्वारा किया गया. महामहिम राज्यपाल ने अपने उद्बोधन में
कहा कि लेखनी और लेखक का संबंध जीव और आत्मा के समान है. साहित्य हमारे समूचे जीवन
पर सदैव प्रभावी रहा है. हमारे विद्वान लेखकों व लेखिकाओं ने अपने महत्वपूर्ण
साहित्यिक अवदान से हमारी सभ्यता और संस्कृति के गौरव को बढ़ाया है. आज इस बात की
खुशी है कि भारतीय लेखिकाओं ने अपने हर बौद्धिक उपक्रम में नई दिशा व दृष्टि
प्रदान करते हुए उन्नत विश्व के निर्माण की एवं मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं को
जगाने की सकारात्मक कोशिश की है. महिलाओं ने अपनी सृजनधर्मिता से साबित किया है कि
उनका लेखन मन की कोरी उड़ान न हो कर हकीकत की गाथा है. उन्होंने कहा कि जब जीवन के
जागृत अनुभवों से जब लेखनी सजीव हो उठती है तो लिखने वाला स्वयं नहीं जानता कि
उसने कैसे इतना श्रेष्ठ लिख दिया. उन्होंने ने कहा कि राजस्थान में मीरा की
गौरवशाली विरासत है और तब से चल कर आज की लेखिकाओं ने समय के साथ नई जमीन, रंगत, भाषा, भाव
व जरूरतों के तेवर को बदला है.
कार्यक्रम की
मुख्यवक्ता रमणिका गुप्ता,
नई दिल्ली ने अपने वक्तव्य में कहा कि हम साथी बनना चाहती है,
स्वामी नहीं. औरत
भी एक मनुष्य है. स्त्री की समस्याएं बहुत गंभीर हैं तथा महिला होने के नाते वह
समाज में अधीन है. विश्व की आधी आबादी गुलाम है. महिलाओं को अपने दृष्टिकोण को
बदलना होगा और हमें दूसरों के लिए नहीं स्वयं के लिए भी बदलने की आवश्यकता है.
उन्होंने आगे कहा कि स्त्री विमर्श का अर्थ है स्त्री को वस्तु से व्यक्ति बनना
होगा. उनके साथ भेदभाव करना सामाजिक अन्याय है. राजस्थान साहित्य अकादमी के
अध्यक्ष श्री वेद व्यास ने अपने स्वागत उद्बोधन में कहा कि साहित्य में लेखक,
लेखिका का कोई भेद नहीं होता. हम महिलाओं को समाज व राष्ट्र के विकास
की मुख्यधारा से जोड़ना चाहते हैं. यह लेखिका सम्मेलन नयी सोच, नया विचार तथा समाज को नयी दिशा देने वाला सार्थक सम्मेलन सिद्ध होगा
ऐसा मेरा प्रयास है. हम इस सम्मेलन के माध्यम से स्त्री के पारम्परिक विचारधारा को
बदलना चहते है स्त्री बदलेगी तो समाज बदलेगा तथा इससे नव राष्ट्र का निर्माण होगा.
इस अवसर पर उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए मो0ला0सु0वि0वि0 के कुलपति प्रो0 इन्द्रवर्धन त्रिवेदी ने कहा
कि महिलाएं स्वयं में एक शक्ति है, ताकत है. यदि वे पूरी शक्ति के साथ जुट
जाए तो हिंसा, युद्ध, बीमारी,
राजनीतिक उठा-पटक आदि कई समस्यों को मिटा सकती है. स्त्री मातृ शक्ति
है, वह संतान का पालन-पोषण करती है. दया, करुणा प्रेम का रूप है. महिलाएं विश्व को किसी भी संकट से बचाने की
शक्ति रखती है. भारत महिलाओं के अतुलनीय योगदान के कारण विश्व में आकर्षण का
केन्द्र है. उद्घाटन सत्र के धन्यवाद की रस्म सम्मेलन की संयोजिका डा. सुधा चैधरी
ने अदा की तथा सभी लेखिकाओं से लेखिका सम्मेलन को सफल बनाने का आह्वान किया और
उन्होंने कहा कि यह स्त्रियों द्वारा आयोजित स्त्रियों के लिए मंच है अतः समस्त
लेखिकाएं इस मंच पर सामाजिक बदलाव के लिए अपने महत्वपूर्ण विचार व्यक्त कर सकती
है. कार्यक्रम के स्वागत उद्बोधन में मो0ला0सु0वि0वि0 कला संकाय के अधिष्ठाता डा. शरद श्रीवास्तव ने स्वागत व्यक्त किया
तथा इस सम्मेलन को स्त्रियों द्वारा समाज को बदलने की दिशा में एक महत्वपूर्ण
आयोजन बताया. इस उद्घाटन सत्र के कार्यक्रम का प्रभावी संचालन डा. सरवत खान ने
किया.
प्रथम
सत्र
लेखिका सम्मेलन
के प्रथम चर्चा सत्र में ‘स्त्री लेखन में पितृसत्ता का सवाल’
विषय पर पत्र वाचन और चर्चा की गई. इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए
डा. जैनब बानू ने कहा कि हमारे समाज में महिलाओं का स्थान सदैव दोयम दर्जें का रहा
है अतः उनको प्रथम दर्जें पर लाना होगा. अपने बीज वक्तव्य में प्रो. सविता सिंह ने
कहा कि - राष्ट्रवादी आंदोलन में स्त्रियां प्राथमिक विषय पर थी वह आन्दोलन आज भी
जारी है. वक्ता डा. जयश्री शर्मा ने कहा कि जहां सत्यम्, शिवम्,
सुन्दरम् है वहां स्त्री है. डा. विमला भण्डारी, सलिला की सम्पदिका ने अपने
विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज महिलाओं को बनाव शृंगार से बाहर निकल कर
अपनी मानसिकता बदल कर साहित्यिक व सामाजिक जागृति की ओर आना होगा. प्रो. मधु
अग्रवाल ने विज्ञापन में नारी के देह सौन्दर्य को दिखाने के संबंध में आवाज उठाने
की बात कही. सत्र का संचालन डा. प्रमिला सिंघवी द्वारा किया गया.
द्वितीय
सत्र
सम्मेलन का
द्वितीय सत्र ‘स्त्री लेखन की बदलती सौन्दर्य दृष्टि’
पर आयोजित किया गया. इसकी अध्यक्षता जेबा रशीद, जोधपुर द्वारा की गई तथा बीज वक्तव्य अपर्णा मनोज द्वारा प्रस्तुत किया गया.
उन्होंने कहा कि स्त्री के सौन्दर्य को समझने की बात है तो सर्वप्रथम उसे स्वयं को
समझने की कोशिश करनी होगी. चर्चा में भागीदारी करते हुए नीलप्रभा भारद्वाज
श्रीगंगानगर, श्रीमती माया कुम्भट, डा. कैलाश कौशल, जोधपुर ने भागीदारी कर अपने महत्वपूर्ण
विचार व्यक्त किए. संचालन डा. मंजु त्रिपाठी द्वारा किया गया.
तृतीय
सत्र
सम्मेलन का
द्वितीय सत्र ‘टकराती अस्मिताएः स्त्री, जाति एवं धर्म’ विषय पर आयोजित किया गया. इसकी
अध्यक्षता रमणिका गुप्ता द्वारा की गई तथा
बीज- वक्तव्य सरूप ध्रुव, अहमदबाद द्वारा दिया गया. चर्चा में
भागीदारी डा. क्षमा चतुर्वेदी, डा. सरवत खान, देवयानी
भारद्वाज और डा. निर्मल गर्ग द्वारा की गई. इस लेखिका सम्मेलन में केवल राजस्थान
बल्कि राजस्थान से बाहर की लेखिकाएं भागीदारी कर रही है. डा. प्रज्ञा जोशी द्वारा
संचालन किया गया.
चतुर्थ
सत्र
लेखिका सम्मेलन
के दूसरे दिन प्रातःकालीन चतुर्थ सत्र में ‘ स्त्री
लेखन में स्त्रीवादी राजनीति: प्रतिवाद, विवाद
और संवाद’ विषयक सत्र के अध्यक्षीय उद्बोधन में
डा. मंजू चतुर्वेदी ने कहा यह सम्मेलन उद्देश्यपूर्ण रहा है तथा स्त्री स्वतंत्रता,
समानता और मंच देने में यह सम्मेलन सार्थक सिद्ध हुआ है. सत्र के
बीज-वक्तव्य में शीबा असलम फहमी ने कहा कि कन्या भ्रूण हत्या का मुख्य कारण
पुरानी दकियानुसी रुढ़िवादी परम्पराएं हैं. सामान्य व्यक्ति परम्पराओं को तोड़ने का
जोखिम नहीं उठा सकता है. बेटों की तरह बेटियों को भी सबल बनाने से इस पर नियंत्रण
हो सकेगा और इससे नारी को समाज में बराबरी का हिस्सा प्राप्त होगा. चर्चा में
भागीदारी करते हुए डा. मोनिका गौड़ ने कहा कि सत्ता जिसके हाथ में होती है वही समाज
के आदर्श, मूल्य, आजादी आदि तय
करते हैं. अतः समाज में स्त्री को भी सत्ता में बराबरी की भागीदारी की ओर बढ़ना
चाहिए जिससे उनके साथ समानता का व्यवहार हो सके.
डा. गायत्री आर्य (आगरा) ने भागीदारी करते हुए कहा कि आज कथ्य पर भी पितृ
सत्ता का पहरा है. हमें क्या लिखना है , यह भी पितृ
सत्ता तय करती है. हमें इस सोच और व्यवस्था को बदलना होगा. वीना गौतम ने अपने
वक्तव्य में कहा कि आज की महिला पहले के स्त्री की तुलना में बहुत आगे है. डा.
तराना परवीन ने कहा कि राजस्थान की महिलाओं को अपनी दिशा स्वयं चुननी होगी और इसके
लिए उन्हें घूंघट हटाना होगा तथा अपने सौन्दर्य को शक्ति के रूप में लाना होगा तब
ही महिलाओं का उत्थान सम्भव है.
पंचम
सत्र
गोष्ठी का पंचम
सत्र ‘पुरुष लेखन में स्त्रीवादी चिन्ताएं’
विषय पर आयोजित हुआ. अपने बीज वक्तव्य में डा. पद्मजा शर्मा, जोधपुर ने कहा कि पुरुषों ने अपने लेखन में स्त्री की महानता और
त्याग को तो बताया है, किन्तु उसके उत्थान की कोई चर्चा नहीं
की. इसीलिए स्त्री जब आज लिखती है तो उसके कई दबे, ढबे
और ढके सच सामने आ जाते हैं तथा नारी अब खुला आसमान चाहती है. चर्चा में भागीदारी
करते हुए डा. दिवा मेहता ने कहा कि आज भी नारी को समाज में दोयम दर्जें से देखा
जाता है तथा विश्व की सबसे बड़ी सच्चाई यह है कि वह पुरुष प्रधान समाज में विश्वास
रखता है. आशा पाण्डेय ने कहा कि स्त्री त्याग, समर्पण,
ममता, प्रेम अदि का रूप मानी जाती है किन्तु
इन्ही गुणों की दुहाई देते हुए उसे आगे बढ़ने से समाज रोकता भी है. कार्यक्रम का
संचालन निर्मला मेहता द्वारा किया गया.
छठा
चर्चा सत्र
छठ्ठा सत्र ‘राजस्थान में स्त्री लेखन: दशा, दिशा
एवं संभावनाएं’ विषय पर सम्पन्न हुआ. इसकी अध्यक्षता
करते हुए नीलिमा टिक्कू, जयपुर ने कहा कि सफल लेखिका के लिए यह
आवश्यक है कि वह युग, समाज, परिवार
को साथ ले कर चले. महिलाओं ने साहित्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी को सच्चाई व
ईमानदारी से चलाया है तथा उसकी रचनात्मकता सभी पहलुओं से जुड़ी हुई है. सत्य को
कथ्य में प्रस्तुत करना महिलाओं की प्रमुख विशेषता है. अपने बीज-वक्तव्य में डा.
रेणु शाह ने कहा कि समाज, संस्कृति और राजनीति की दिशाएं महिला
लेखन के लिए जिम्मेदार है. महिला लेखन की सम्भावनाएं अब बढ़ रही है, वे खत्म नहीं हुई है. आवश्यकता है कि राजस्थान की लेखिकाएं राष्ट्रीय
क्षिजित पर अपनी पहचान बनाएं तथा राजस्थान का संघर्ष, कर्म,
शौर्य, पराक्रम जीवंतता के साथ उनके लेखन में
अए और पहचान बनाये. आज महिला लेखन शीर्ष पर है तो इस दृष्टि से राजस्थान का महिला
लेखन भी प्रत्येक विधा में संतोषजनक है और बौद्धिक साहित्य में भी उभरकर आ रहा है.
राजस्थान की महिलाओं का सृजन बदलते भारत के परिप्रेक्ष्य में नयी सम्भावनाएं दे
रहा है. चर्चा में भागीदारी करते हुए डा. दीप्ति कुलश्रेष्ठ ने कहा कि महिला लेखन
उनके संघर्ष का महत्वपूर्ण उपक्रम है. वंचित होने का अहसास ही महिलाओं के लेखिका
होने का कारण है. डा. रजनी चतुर्वेदी ने कहा कि परम्परावादी और आधुनिकता का
सामंजस्य महिला लेखन में देखने को मिलता है. मुख्य सरोकार तो जीवन और चेतना का
सामंजस्य है. डा. गायत्री आर्य ने कहा कि परिवार हमेशा रहा है और रहेगा लेकिन
महिलाओं को स्वतंत्रता और स्वछंदता में अंतर तय करना होगा, हमें
स्वछंदता से ज्यादा स्वतंत्रता की ओर ध्यान देना होगा. कार्यक्रम का संचालन डा.
चन्द्रकान्ता बंसल द्वारा किया गया. राजस्थान लेखिका सम्मेलन में प्रदेश की 200 से अधिक महिलाओं ने भागीदारी की तथा राष्ट्र की जानी-मानी प्रबुद्ध
लेखिकाओं ने भी सम्मेलन में भागीदारी कर सम्मेलन व समाज को नई दिशा व दशा दी.
लेखिका सम्मेलन
का समापन समारोह दिनांक 4 नवम्बर, 2012 को
अपराह्न में भव्यता के साथ सम्पन्न हुआ. इस अवसर पर मुख्य वक्ता राजस्थान महिला
आयोग की अध्यक्ष प्रो0 श्रीमती लाड़ कुमारी जैन ने कहा कि औरत
एक बीज है जिसमें विकास की वृद्धि होती है. बीज का एक दाना आगे जाकर वटवृक्ष बनता
है. आज वर्तमान भारत को सुदृढ़ बनाने में महिलाओं का महत्वपूर्ण योगदान है, क्योंकि भारत की नारी अपने घर को भी वित्तीय कुशलता और मितव्ययता से
चलाती है. समाज में व्याप्त कुप्रथाओं की वजह से ही औरत का शोषण होता रहा है -
जैसे कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह आदि. सृष्टि की रचयिता और
पालनकर्ता महिला ही है, माँ क्रूर नहीं हो सकती वह क्रूरता को
भी माफ कर देती है. महिला पूरे घर और समाज का पोषण करती है, मगर
आज समाज एक महिला का पोषण करने में असहाय है. समापन समारोह की विशिष्ट अतिथि के
रूप में डा. सविता जोशी, प्राचार्य, राजकीय
मीरा कन्या महाविद्यालय ने कहा कि कोई भी लेखन कार्य बिना भावना से नहीं हो सकता,
लेखक समाज को दिशा प्रदान करने वाला है . लेखक समानता के साथ लेखन
करे. आज के विकास के दौर में महिलाओं को समानता के साथ आगे लाना आवश्यक है. शिक्षा
ने महिलाओं की जिम्मेदारी बढ़ा दी है, उन्हें बाहर की
जिम्मेदारी भी दी है. उन्होंने कहा कि हमें स्वतंत्रता के मायने सोचने होंगे तभी
हमारे लेखन से समाज में परिवर्तन हो सकेगा. समापन समारोह के दूसरे विशिष्ट अतिथि राजस्थान कृषि महाविद्यालय
के कुलपति प्रो0 ओ.पी. गिल ने कहा कि ‘भावना’ शब्द को स्त्री का पर्यावाची माना गया
है. नारी का अनुभव उसका सबसे बड़ा हथियार है. सम्पूर्ण नारी जाति को समानता का
अधिकार मिलना चाहिए. लेखक समाज को बदलने की ताकत रखता है. इस अवसर पर उन्होंने
स्त्री और पुरुष के घटते अनुपात पर अपनी चिन्ता प्रकट की.
इस सत्र की
अध्यक्षता करते हुए अकादमी अध्यक्ष श्री वेद व्यास ने कहा कि समाज लेखिकाओं
को मार्गदर्शिका के रूप में देखता है. दुनिया विचार से बदलती है डंडे से नहीं.
नारी शक्ति का उद्देश्य परिवार का विघटन नहीं है वरन् समभाव लेकर परिवार को बढ़ाना
है. यह आयोजन सामाजिक सरोकारों को ले कर किया गया है. आज महिला की असली लड़ाई
व्यवस्था से है. समाज के अन्तर्विरोध को समझने की कोशिश करें. समाज में जो
विसंगतियां है उन्हें दूर करने का काम साहित्य ने किया है. लेखकों ने विभिन्न
क्रान्तियों के माध्यम से समाज को सुधारा है. आज व्यक्तिवादी साहित्य लिखा जा रहा है, आवश्यकता
सामूहिक सरोकारों का साहित्य लिखे जाने की है. हमें समाज में व्याप्त जो अज्ञानता
और अत्याचार को मिटाना होगा. लेखक को सबसे पहले अपने स्वाभिमान, आत्म विश्वास को और निर्भीकता को समझना चाहिए तभी सच्चा लेखन व
सामाजिक बदलाव होगा. उन्होंने कहा इस लेखिका सम्मेलन से प्रदेश व राष्ट्र को नई
दिशा व दशा मिलेगी. प्रदेश व देश की महिलाओं का एक मंच पर वृहद रूप से उपस्थित
होना हमारे लिए गौरव की बात है इस सत्र का संचालन श्रीमती किरण बाला जीनगर द्वारा
किया गया. लेखिका सम्मेलन की संयोजक डा. सुधा चैधरी द्वारा धन्यवाद ज्ञापित किया
गया.
सचिव