सान्निध्य : कविओं का समागम

8/22/2012


सान्निध्य : शिल्पायन का एक आत्मीय आयोजन (कुछ यादें) 
अंजू शर्मा


हाल ही में तीन दिन यानि १८-२० अगस्त २०१२ को  'शिल्पायन' द्वारा कविता पर आधारित कार्यक्रम 'सान्निध्य' का आयोजन किया गया!  आयोजक और शिल्पायन से जुड़े ललित शर्मा, जो इस आयोजन के सूत्रधार रहे, ने इसे 'शिल्पायन का आत्मिक आयोजन' करार दिया!  यह आयोजन काफी दिन से साहित्य जगत में चर्चा का विषय बना हुआ था!  देश भर के वरिष्ठ कवियों के साथ स्थापित और नए कवियों का यह अद्भुत समागम उत्सुकता की सभी सीमाओं का अतिक्रमण पहले ही कर चुका था!  मुझे जब शिल्पायन से ललित शर्मा जी का फ़ोन आया था तो मैंने सहर्ष अनुमति देकर आमंत्रण स्वीकार किया, वस्तुतः मेरे लिए यह आयोजन एक ऐसी कार्यशाला होने वाला था जहाँ एक ओर मुझे सभी वरिष्ठ कवियों से मिलने और सुनने का अवसर मिलने वाला था, वहीँ बहुत कुछ सीखने के भी अवसर थे!  मन ही मन मैं इसके लिए ललित जी की आभारी रहूंगी!  दूसरी ओर समकालीन कवियों को सुनना, समकालीन हिंदी कविता और आलोचना पर दिल्ली की आपाधापी से दूर सतपुड़ा के जंगलों में प्रकृति की गोद में तीन दिन काव्य पाठ और विमर्श के मौके! तो कुल मिलाकर पूरा पैकेज किसी भी कवि के लिए हर्ष और कौतुहल का विषय हो सकता था और मैं भी अपवाद नहीं थी! 

हम सभी के लिए दिल्ली-जबलपुर ट्रेन में सीटें बुक की गयी थीं और १७ तारीख को कुछ लोग जो दिल्ली से जबलपुर जाने वाले थे, नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एकत्र हुए!  यहाँ से हमें जबलपुर जाना था और अगले दिन वहां से कान्हा नेशनल पार्क के लिए रवानगी तय थी!  ललित जी बराबर सभी से संपर्क में बने हुए थे, इधर हम लोगों में भी चर्चा होती रही था किन्तु पूरा खुलासा तो आयोजन  में ही होना था तो उत्सुकता का तत्व तो सभी में विद्यमान रहा!  ट्रेन में मेरे साथ ज्योति चावला, उमाशंकर चौधरी, कुमार अनुपम, प्रांजल धर, विवेक मिश्र, चंडीगढ़ से दिल्ली आई मोनिका कुमार थे!  वंदना शर्मा, मिथिलेश श्रीवास्तव, वरिष्ठ कवयित्री सुमन केशरी, सुरेश यादव इसी ट्रेन के अलग कम्पार्टमेंट में थे!  सभी मित्र कवि थे और जाने पहचाने थे, आपस में संक्षिप्त परिचय के बाद सभी सहज हो गए!  जहाँ इतने कवि हों वहां भला कविता और साहित्य के सिवा और कुछ संभव है, लिहाजा जम कर साहित्य चर्चा हुई, पहले शिल्पायन द्वारा छापी गयी स्मारिका से (जिसमें वर्णक्रमानुसार सबके नाम, परिचय ओर कवितायेँ थे और जिसके पहले ही पृष्ठ पर मेरा नाम था, साथियों ने मुझे इसकी बधाई दी)  कवियों की चुनिन्दा कविताओं का कुमार अनुपम द्वारा पाठ किया गया जिसे सुनकर कवि के नाम का अनुमान लगाया जा रहा था! उसके बाद सभी ने रीति काल से लेकर समकालीन कवियों तक हर दौर के अपनी पसंद के पांच कवियों के नाम घोषित किये, कवियों की काव्य-शैली और विशेषताओं पर भी विमर्श हुआ!  ग्वालियर तक आते-आते दो बातें हुई एक तो उमाशंकर चौधरी को किसी अपरिहार्य कारणवश वापिस दिल्ली लौटना पड़ा वहीँ अशोक कुमार पाण्डेय और गिरिराज किराडू ने भी हमें ज्वाइन कर लिया!  रात को बाकायदा मुशायरा रखा गया जिसमें सभी ने कुछ अपने और कुछ अपने पसंदीदा शायरों के नगमें सभी को सुनाये, कहना ना होगा कि महफ़िल लूटने में कुमार अनुपम का जवाब नहीं!  पूरे ट्रेन-कम्पार्टमेंट में बारिश की सौंधी खुशबू के साथ साथ ग़ालिब के शेर तैर रहे थे और माहौल बहुत ही खूबसूरत हो गया था, बाहर रात की घनी चादर ने मौसम को अपने आगोश में ले लिया था और नींद ने हमें अपने!  


अगली सुबह जब आदतन सुबह जल्दी मेरी आँख खुली तो हम लोग तेजी से जबलपुर की ओर बढ़ रहे थे!  रात में हुई बारिश से मौसम सुहाना हो चला था, जबलपुर पहुँच कर ललित शर्मा जी ने सभी का गर्मजोशी से स्वागत किया, संध्या नवोदिता और अन्य कई कवियों से मुलाकात हुई!  एक शानदार गेस्ट हाउस में हम कवयित्रियों के कुछ देर सुस्ताने का इन्तज़ाम किया गया था, जहाँ एक वैन हमें लेकर गयी थी!  थोड़ी देर बाद हम लोग एक बस में सवार  होकर अपनी मजिल यानि कान्हा नेशनल पार्क की ओर चल पड़े!  रास्ते में दोनों ओर प्रकृति की सुंदरता बिखरी हुई जिसे लोगो धडाधड अपने कैमरों में कैद कर रहे थे, सतपुड़ा के जंगल ओर पहाड़ियां, हदे-निगाह तक फैली हरियाली, रिम-झिम बारिश की बूंदे और चौमासे में उफनती पवित्र नर्मदा के चौड़ा पाट....चार घंटे कैसे बीते कुछ पता ही नहीं चला, इस बीच एक बार रूककर बारिश में गर्म चाय का आनंद लेना हम लोग नहीं भूले!  कान्हा में महुआ टाईगर रेसोर्ट में हमारे ठहरने का बंदोबस्त किया गया था, जहाँ इस आयोजन की भरपूर तैयारियां की गयी थीं!  महुआ टाईगर रेसोर्ट जंगल के बेहद करीब उस रास्ते के आखिरी छोर पर था और ये इतना खूबसूरत था कि उसे निहारते हुए हम लोग २४ घंटों की थकान लगभग भूल ही गए थे!  रेसोर्ट में पहुंचकर देश भर आये कई कवियों से मुलाकात हुई जो फेसबुक के सहारे जुड़े हुए थे!  शरद कोकास जी ने तुरंत पहचान कर आवाज़ दी तो अच्छा लगा!  ललित जी ने सभी के ठहराने का बहुत ही उम्दा प्रबंध किया हुआ था,  चाय और खाने के बाद हम लोगों ने अपने कमरों की और प्रस्थान किया!  मेरा रहने का प्रबंध वंदना शर्मा के साथ किया गया था, जो मेरी अच्छी परिचित हैं लिहाजा कमरे का माहौल काफी आत्मीय था!  हर जगह इंटीरियर को वन्य टच दिया गया था, यहाँ तक कि कमरे में लगी पेंटिंग्स और परदे भी जंगल के दर्शन करा रहे थे!  नहा-धोकर तैयार होने के बाद कुछ देर हमने आराम किया और फिर सेमिनार हॉल की ओर चल पड़े जहाँ पहले सत्र का आयोजन शुरू किया जाना था!  


दूसरा सत्र कुछ देर से शुरू हुआ इसमें 'समकालीन कविता की चुनौतियों' पर विमर्श का दौर चला!  सञ्चालन कर रहे थे प्रसिद्द कवि बद्रीनारायण और सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे वरिष्ठ कवि मलय जी!  इसमें जिन वरिष्ठ कवियों ने अपने विचार रखे उनके नाम इस प्रकार थे- विजय कुमार, अरुण कमल, राजेश जोशी, नरेश सक्सेना, सुमन केशरी और मलय जी!  इन सभी कवियों अपने अनुभव और कविता के विकास और चुनौतियों पर अपने विचार रखे!  मलय जी ने जहा कविता को समाज से जोड़ते हुए आगे बढ़ने की बात की वहीँ अरुण कमल जी ने कविता में निहित मानवीयता को प्रमुखता देने की बात की, उन्होंने कहा कि कविता में मानवीयता किसी भी वाद से ऊपर है और मानवीय होना ही कवि होना है!  उन्होंने कवियों को दशक के आधार पर वर्गीकृत करने की बजाय कालखंड के आधार पर अपने विचार रखे!  नरेश सक्सेना जी ने समकालीन कविता और तकनीक के बरक्स अपनी बात रखी!  सुमन केशरी जी ने कविता में कहन और शिल्प के अंतर्गत अपनी कविताओं का उदाहरण देते हुए, कविता में मिथकों के प्रयोग के जरिये परंपरा और समकाल को एक साथ चलने की बात की!  यहाँ गिरिराज किराडू ने भी अपने विचार सामने रखे जिस पर राजेश जोशी और अरुण कमल जी ने विस्तार से चर्चा की!  अशोक कुमार पाण्डेय ने भी वरिष्ठता और साहित्य में निहित औपचारिकताओं पर अपने विचार रखे!  साहित्य और हिंदी कविता के स्तम्भ इन वरिष्ठ कवियों को सुनना एक अद्भुत अनुभव रहा और चर्चा से कई बातें सामने आई जो आगे भी प्रासंगिक रहने वाली हैं!


झमाझम बारिश के बीच शाम को दूसरे सत्र की शुरुआत हुई जिसका सञ्चालन कर रहे थे युवा कवि अशोक कुमार पाण्डेय और अध्यक्ष थे वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना!  इस सत्र की विशेषता रही कि इस सत्र के शुरू में प्रसिद्द कवि मोहन डहेरिया को वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई जी के हाथों शिल्पायन द्वारा स्थापित पहला 'सुदीप बनर्जी सम्मान' दिया गया!  गौरतलब है कि इस पुरस्कार की चयन समिति में वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी, विष्णु नागर तथा लीलाधर मंडलोई शामिल हैं!  मंडलोई जी ने उन्हें शांत रहकर बिना किसी शोर के अपना काम करते रहने वाला एक ऐसा कवि बताया जिनकी कविताओं में लगातार कोयला खदानों में काम करने वाले श्रमिक वर्घ के संघर्षमय जीवन और उससे जुडी चुनौतियों का जिक्र आता रहा है!  उनकी कविताओं में निहित मानवीयता बरबस ध्यान खींचती है और वे चुपचाप अपना काम करते रहे हैं!  इस सत्र में मोहन डहेरिया जी ने अपनी कुछ प्रेम कविताओं का पाठ किया और उनके बाद कवयित्री ज्योति चावला, हाल ही में भारत भूषण सम्मान पाने वाले कुमार अनुपम, अशोक कुमार पाण्डेय, रंजन कुमार और लम्बी कविता पुरातत्ववेत्ता के रचयिता शरद कोकास ने कविता पाठ किया!   रात खाने के पश्चात् पांचो युवा कवयित्रियाँ एक कमरे में एकत्र हुई जहाँ समकालीन कविता के साथ साथ स्त्री विमर्श पर जमकर चर्चा हुई,  लगभग ऐसा ही कई अन्य जगहों पर भी हुआ, जहाँ सभी ने वरिष्ठ कवियों के सान्निध्य का भरपूर लाभ उठाया!

१९ तारीख को सुबह नाश्ते के पश्चात् तीसरे सत्र की शुरुआत हुई जिसका सञ्चालन किया कवि बसंत त्रिपाठी ने और अध्यक्षता की वरिष्ट कवि मलय जी और लीलाधर मंडलोई जी ने!  यहाँ संध्या नवोदिता, प्रांजल धर, नासिर अहमद सिकंदर, हरिओम राजौरिया, बसंत त्रिपाठी, पंकज राग, लीलाधर मंडलोई और मलय जी ने काव्य पाठ किया!  लीलाधर जी ने सतपुड़ा के जंगलों पर आधारित अपने काव्य संकलन से कवितायेँ सुनकर सभी को कन्हर (कान्हा का स्थानीय नाम) और वहां रहने वाले जीव जंतुओं के भरपूर दर्शन कराये!  

खुशगवार मौसम और गहराते बादलों के बीच दोपहर खाने के समय लीलाधर मंडलोई, राजेश जोशी जैसे वरिष्ठ कवियों के साथ कवयित्रियों ने कविता और आलोचना पर अपने प्रश्नों पर विमर्श किया!  यहाँ ज्योति चावला और अंजू शर्मा ने लीलाधर मंडलोई  जी के सामने कई जिज्ञासाएं रखी!  कविता में महिला कवियों की कमी, स्थान और आलोचना जैसे कई मुद्दों पर खुलकर चर्चा हुई, जहाँ रेखांकित किये जाने योग्य बात कहते हुए लीलाधर मंडलोई जी ने कहा आलोचना का हर दौर में अपना स्थान रहा है और यदि कविता पूर्वाग्रहों से ग्रसित आलोचना का शिकार हो रही है तो ये मान लेना चाहिए कि कुछ विशेष रचा जा रहा है जो अपनी जगह स्वतः बना लेगा!  चौथे सत्र का सञ्चालन कर रहे थे युवा कवि, कहानीकार विवेक मिश्र और इस सत्र की अध्यक्षता कर रहे थे वरिष्ठ कवि राजेश जोशी और अरुणकमल!  इस सत्र में वंदना शर्मा, वागीश सारस्वत, असंग घोष, विवेक मिश्र, शिरीष कुमार मौर्य, अरुण कमल और राजेश जोशी जी ने अपनी कविताओं का पाठ किया!  कई बेहतरीन कविताओं ने वातावरण में घुलकर उसे और अधिक खूबसूरत बना दिया था!  अरुण कमल जी ने अपने सभी संग्रहों से एक एक कविता का पाठ किया! वहीँ राजेश जोशी जी की कविता प्रधानमंत्री भी अद्भुत रही! 

शाम को जब अँधेरा अपनी जगह बना रहा था तो पांचवे सत्र की शुरुआत हुई जिसका सञ्चालन कर रहे थे प्रसिद्द कवि निरंजन श्रोत्रिय और अध्यक्षता कर रहे थे वरिष्ठ कवि हरिशंकर पाण्डेय और बद्रीनारायण!
इस सत्र में जिन कवियों ने अपनी कवितायों का पाठ किया वे थे - अंजू शर्मा, सुरेश यादव, मिथिलेश श्रीवास्तव, गिरिराज किराडू, निरंजन श्रोत्रिय, प्रतापराव कदम, बद्री नारायण और हरिशंकर पाण्डेय!  मिथिलेश जी ने अपनी कवितायेँ घर पर रह जाने के कारण लैपटॉप से पढ़कर सुनाई, जिसके खुलने में देरी होने पर वे अपने चिरपरिचित अंदाज़ में विनोदपूर्ण चुटकियाँ लेते रहे और हाल ठहाकों से गूंजता रहा, कुल मिलाकर लैपटॉप और जागरूक श्रोताओं के कारण ये सत्र कुछ खास बातों के लिए सभी के लिए यादगार बन गया!  

रात में स्विमिंग पूल के किनारे स्थानीय लोकनृत्य का आयोजन किया गया जिसमें नरेश सक्सेना जी की पहल पर सभी ने हिस्सा लिया!  कुमार अनुपम, हरिओम राजौरिया और बद्री नारायण जी और सभी को सुखद आश्चर्य से भर देने वाले अंदाज़ में अरुण कमल जी ने भरपूर लोकगीतों द्वारा गहराती शाम को सुरमय बना दिया!  अंजू शर्मा और ज्योति चावला ने एक साथ मिलकर पंजाबी गीतों पर ताल मिलायी, अंजू शर्मा ने एक अवधी गीत सुनाया और संध्या नवोदिता ने युवा साथियों विवेक मिश्र, अशोक और प्रांजल के साथ कई जनगीतों को अपना स्वर दिया!  अंत में हरिओम जी ने आज़ादी की गूँज से सभी को जोश में भर दिया और इस तरह ये रात अपने समापन की ओर बढ़ चली और हम लोग अपने कमरों की तरफ जहाँ फिर से पूरी रात जमकर साहित्य चर्चा हुई!  

अंतिम दिन यही २० तारीख को आखिरी सत्र का सञ्चालन किया आशीष त्रिपाठी ने और अध्यक्षता की वरिष्ठ कवियों सुमन केशरी और विजय कुमार जी ने!  इस सत्र में मोनिका कुमार, देवेश चौधरी, संजय कुंदन, आशीष त्रिपाठी, नरेश सक्सेना, सुमन केशरी और विजय कुमार जी ने अपनी सुंदर कविताओं का पाठ किया!  संजय कुंदन जी की कवियों में निहित व्यंजना ने सभी को ठहाके लगाने पर मजबूर कर दिया, वहीँ नरेश ही अपनी ताज़ा कविता द्वारा स्त्री विमर्श के जिन पहलुओं को सामने रखा वह चौंका देने वाला था!  इस सत्र के अंत में आयोजक और प्रकाशन शिल्पायन से जुड़े ललित शर्मा ने अपने विचार रखे उनके अनुसार मौजूद लगभग सभी पीढ़ियों के कवियों को एक साथ एक मंच पर लाने और चर्चा के लिए बेहतर अवसर उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से किये गए इस आयोजन की सार्थकता इसे आयोजित करने के उद्देश्य में निहित है!  वे इसे आगे भी जारी रखने के प्रति आशान्वित थे! 


यहाँ मैं कहना चाहूंगी कि औपचारिकताओं से परे और आत्मीयता से ओत-प्रोत इस आयोजन की सफलता इस तथ्य में निहित रही कि यहाँ जहाँ एक ओर बहुत सी कवियों का पाठ किया गया वहीँ दूसरी ओर साहित्यमय स्वस्थ वातावरण में जमकर साहित्य चर्चा भी हुई!  युवा कवियों को वरिष्ठ कवियों से विमर्श का भरपूर लाभ और मार्गदर्शन मिला, वहीँ बहुत सी शंकाओं और जिज्ञासाओं पर भी समाधान ढूंढें गए!  अरुणकमल जी हुई मेरी बातचीत में उन्होंने कई तरह से आलोचना पर अपने विचार रखे, मेरी जिज्ञासा थी कि आलोचना का स्वागत करना चाहिए तो नकारात्मक आलोचना पर हमारी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए, इस पर उनका जो कहना था उसके अनुसार तो अब मुझे सीख लेना चाहिए कि आलोचना को कब गंभीरता से लेना है और कब मुस्कुराकर आगे बढ़ जाना है!   एक और बात जो उल्लेख करने लायक है सभी वरिष्ठ कवियों ने नए कवियों को बहुत प्रोत्साहित किया और मार्गदर्शन तथा  अच्छी बातों की प्रशंसा में भी पीछे नहीं हटे!  खैर इस तरह के कई सुखद अनुभव लेकर हम लोग वापसी के लिए रवाना हो गए!  इस आयोजन के दौरान और उसके बाद भी सभी लोग ललित जी द्वारा इतने सारे लोगों के लिए की गयी समुचित व्यवस्था की तारीफ करते रहे!  हर बात का ख्याल रखा गया था और किसी को भी किसी तरह से कोई परेशानी ना हो इसकी पूरी व्यवस्था थी!  यकीनन इस बात का भी पूरा ख्याल रखा गया था कि साहित्य और कविता के इस सुंदर, अनूठे और अद्वितीय समागम का सभी लाभ उठायें और मैं कह सकती हूँ हमारा वहां जाना कई मायनो में सार्थक और यादगार बन गया!  

वापसी में भी बस में खूब गीत और कवितायेँ गायी गयीं!  और शाम को हम लोगों ने ट्रेन में अपनी सीट ले ली!  कार्यक्रम से सम्बंधित चर्चाओं के दौरान नींद ने दबोच लिया और सुबह हुई तो बारिश की फुहारों के बीच हम लोग दिल्ली की ओर बढ़ रहे थे!  चर्चाओं ओर गपशप का सिलसिला तब तक जारी रहा जब तक हम दिल्ली नहीं पहुँच गए!  बेशक ४ दिन की थकान हम लोगों पर तारी हो रही थी पर दिल खुशनुमा यादों से सराबोर था!  इस तरह कभी ना भूलने वाले शिल्पायन के इस आयोजन 'सान्निध्य' ने हमारे दिलों पर जो अमिट छाप छोड़ी है वह कभी नहीं मिटने वाली है!  अपने सामान, सुखद स्मृतियों, ललित शर्मा और शिल्पायन के प्रति आभार और नए मित्रों की याद लिए हम लोग अपने घर लौट आये!  








अंजू शर्मा 
 

2021 : विष्णु खरे स्मृति सम्मान : आलोचना और अनुवाद

2021 में यह सम्मान आलोचना और अनुवाद के क्षेत्र मे 2018 , 19 , 20 तक प्रकाशित रचनाओं को प्रदान किया जाएगा.

चयन में आपका स्वागत है

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