पिछले दिनों पूरे देश में गुवाहाटी वाली घटना चर्चा का विषय बनी हुई थी, इसी के साथ असरा में हुए खाप पंचायत जिसमें स्त्रियों के मोबाइल पर बात करने पर रोक से लेकर 40 वर्ष से कम आयु वाली स्त्रियों के अकेले घर से बाहर जाने के रोक और उनके पहनावे पर निगाह को लेकर जो मन में सवाल उठे, उन पर वंदना शर्मा जी, अपर्णा मनोज जी,और सुमन केशरी जी के साथ बातचीत करके हमने स्त्रियों के विरुद्ध हो रही इन साजिशों का विरोध ज़मीनी स्तर पर करने का विचार किया और फिर फर्गुदिया समूह में कुछ मित्रों की सहमति पर एक शांतिपूर्वक स्त्री विमर्श का आयोजन करने का निर्णय लिया गया, दिन तय किया गया 23 जुलाई 2012 और स्थान इण्डिया गेट रखा गया.
इण्डिया गेट
जैसी जगह पर ऐसा कार्यक्रम करना आसान नहीं था, ऐसे
समय में और भी ज्यादा जब पंद्रह अगस्त नजदीक है. आखिरकार दिल्ली पुलिस के सहयोग से
हम ये कार्यक्रम बिना किसी असुविधा व अवरोध के कर सके. कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार
करने से लेकर कार्यक्रम ख़त्म हो जाने के बाद तक, पूरे
समर्पण भाव से एक आयोजक की ईमानदारी से भरत जी ने सारी जिम्मेदारी निभाई .भरत जी ने फोटोग्राफ़ लेकर तथा उसे शेयर करके इस कार्यक्रम को एक तरह
से पब्लिक मेमोरी का हिस्सा भी बना दिया . कार्यक्रम
सम्बन्धी अपने सुझाव और मेरा मार्गदर्शन करने के लिए वरिष्ठ कवयित्री सुमन केशरी
ने लगातार मुझसे फ़ोन पर संपर्क बनाये रखा और मेरा हौसला बढ़ाती रहीं.
चर्चित कहानीकार
मनीषा कुलश्रेष्ठ ने गुवाहाटी प्रकरण को तालिबानी करतूत करार दिया और अपनी नाच
गाने को पेशा मानने वाली जाति की महिलाओं की एक कहानी के कुछ मार्मिक अंश सुनाए
जिसके माध्यम से स्त्री की दुर्दशा की एक और तस्वीर सामने आई.
अपर्णा मनोज ने
अपने व्यक्तव्य में मंटों की कहानियों को याद किया और कहा कि स्त्रियों के प्रति
रवैए में कोई खास पर्क नहीं आया है .
उमा गुप्ता ने
भी स्त्री उत्पीड़न के कुछ तथ्यात्मक पहलुओं को सामने रखकर अपने व्यक्तव्य में
इससे जुडी कुछ बातों को रेखांकित किया .
भरत तिवारी जी
ने अपनी एक कविता 'घटिया, ओछे नकारे हम' के
माध्यम से महिला अपराध की बढती घटनाओं के प्रति चिंता एक पुरुष के दृष्टिकोण से
जाहिर की.
दिल्ली
विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक आशुतोष कुमार जी ने अपने व्यक्तव्य
में कहा कि हर विरोध जो दर्ज़ होता है वो ऐतिहासिक है. उन्होने
सोनी सोरी प्रकरण से जुड़ी अपनी एक कविता का पाठ भी किया .
कवि अरुण देव ने
अपनी दो कविताओं 'हत्या ' और 'मेरे अंदर की स्त्री ' के जरिये अपनी
बात रखी .
कवयित्री सुमन
केशरी जी ने अपने प्रभावशाली वक्तव्य में यह रेखांकित किया कि आज समाज औरत के
व्यक्तित्व अर्जन को समझ नहीं पा रहा और उस पर तरह-तरह से काबू करना चाहता है,
कभी उसे नोच-खसोट कर तो कभी फ़तवे ज़ारी करके. उन्होने अपनी दो
कविताएं- 'धुंध में औरत' तथा
'औरत' का पाठ किया .सभी महिलाओं का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने खाप पंचायत द्वारा इस
सुविचारित, सुप्रचारित आचार-संहिता को नकारने का आह्वान
किया .
कवयित्री
अनामिका जी ने अपनी एक कविता के साथ स्त्री देह की तुलना एक खुले घाव से करते हुए
कहा कि वह खुला घाव 'दभक' रहा
है, स्त्री की इच्छा के विरुद्ध उसकी देह पर
स्पर्श-मात्र भी उसका उत्पीड़न है .
कवयित्री अंजू
शर्मा ने सञ्चालन के साथ अपनी एक कविता 'पब से निकली
लड़की' का पाठ किया.
कार्यक्रम की
अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि और आलोचक अशोक वाजपेयी ने स्त्री-अस्मिता के संघर्ष
को एक लंबे समय तक चलने वाला संघर्ष बताया साथ ही कहा कि कम से कम उम्मीद बनाए
रखने के लिए हमें लगातार लिखना और संघर्ष करना है। उन्होने अपनी कविता 'तोते से बची पृथ्वी ' का पाठ भी किया . कार्यक्रम में उपस्थित रितुपर्णा मुद्राराक्षस ने भी अपनी कविता का
पाठ किया और महिलाओं की मौजूदा स्थिति पर अपने विचार रखे . स्वर्ण
कांता,अरुणा सक्सेना,आनंद
द्विवेदी, निरुपमा सिंह,इंदु
सिंह, सुशील कृष्नेट,आशुतोष
मिश्रा,अविनाश पाण्डेय,श्रीश
पाठक,रामचंद्र, आलोक
रंजन झा, श्रुति पाल,शिल्पा
सिंह,राजीव कुमार,सुबोध
कुमार,राजीव तनेजा सहित बहुत से मित्र अपने सरोकारों
के साथ कार्यक्रम में उपस्थित थे .
कार्यक्रम में
उपस्थित अतिथिगणों और मित्रों का फर्गुदिया समूह की तरफ से हार्दिक आभार !!
(कार्यक्रम में
समाचार पत्रों और न्यूज़ चैनल के रिपोर्टर्स को आमंत्रित करने के लिए मनीषा
कुलश्रेष्ठ और सुमन केशरी जी का विशेष रूप से आभार !!)