दिनांक १३ और १४
सितम्बर, अहिन्दी प्रदेश गुजरात की काली
मिट्टी हिंदी कवियों के आगमन से महक उठी. अहमदाबाद के आकाश पर छाये काले बादल
कविता में डूब मदिर-मदिर बरसते रहे और यहाँ के वातावरण में सब कुछ काव्यमय हो उठा.
यह आयोजन इसलिए भी अद्भुत था कि यहाँ कविता और तकनीकि का समागम हो रहा था.
दिनाँक १३. ९..२०१२
की संध्या पर आयोजित कार्यक्रम खुले में रचना- ५ का सफल संचालन युवा एवं
प्रतिभाशाली कवि श्री सईद अयूब ने किया, ओ.एन.जी.सी.
आगार अध्ययन संस्थान, अहमदाबाद, का
सेमीनार हॉल जिसका साक्षी रहा.
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि, पत्रकार, कथाकार, व्यंग्यकार श्री विष्णु नागर जी ने की, जिन्हें हिंदी साहित्य में अपने खास तरह के मुहावरे के लिए जाना जाता हैं.कार्यक्रम का शुभारंभ सांय ४ बजे स्थानीय एवं संवेदनशील कवयित्री अपर्णा मनोज ने अपनी रचना "स्त्री" से किया, जो स्त्री अस्मिता पर प्रश्न भी उठाती है और पुरुषों की दबंगई पर प्रहार भी करती है. "लौटना" आदिवासी स्त्रियों की जीवनशैली में गुंथी दिखाई देती है , तो "मृत्यु" मृत्यु से आग्रह करती है एक बार स्त्री हो जाने का.... आयु के हर पन के साथ बदलता जाता है गाँव "लहेजी".
इसी क्रम में आगे
बढ़ते हुए हरिद्वार से आये श्री समीर वरण नंदी जी ने "अजगर " को
'अ' के
नज़दीक बैठे देखा, तो "कछुआ" दूसरों से बचने के
लिए स्वयं को घायल करते दिखा.उनकी कविता में "खेल" श्रेष्ठतम खिलाड़ियों
के साथ स्थान पाते हैं, तो बोरे में बंद
"पांडुलिपियाँ" उन्हें बचपन में लौटा ले जाती हैं. पलभर के लिए मुझे लगा
कि मैं भी खरगोश की तरह बचपन के इस अरण्य में दौड़ती फिर रही हूँ. स्मृतियों की एक
पाण्डुलिपि जैसे शनैः शनैः खुल रही थी.
कार्यक्रम में
स्त्रियों की उपस्थिति का आधिक्य देखते हुए श्री विष्णु नागर जी ने स्त्री
एवं प्रेम विषयक कविताओं से लोगो का ध्यान खींचा. नदी की भांति निश्छल और निर्बाध
गति से बहती हैं उनकी कविताएँ, जिनमे तैरते हुए
शब्द-चित्रों को सहजता से देखा जा सकता है, चाहे वह "छोरे-
छोरियां" हो या "हौ ". प्रेमाभिव्यक्ति की पुनरावृत्ति का
गरिमामयी समर्थन करती "शादी के तेईस साल बाद" एक अलग जीवन्तता
बिखेरती है."मालिक चाय तैयार है" स्त्री के स्वाभिमान की अनकही कथा कहते दिखाई देती है. निसंदेह नागर जी की सभी कविताएँ सराहनीय थीं.
कविता संबंधी
प्रश्नों पर चर्चा करते हुए उप महाप्रबंधक एवं राजभाषा अधिकारी आगार अध्ययन
संस्थान ओ.एन.जी.सी. श्री एस.वेलचामी ने कहा कि गुजरात राज्य में
"खुले में रचना" कविता से सम्बंधित चर्चा का पहला कार्यक्रम है, इसकी मैं सराहना करता हूँ और इस नई सोच का स्वागत करता हूँ. कार्यक्रम के
संयोजक श्री सईद अयूब को धन्यवाद देता हूँ.
साहित्य और तकनीक को लेकर चर्चा में अपने
विचार व्यक्त करते हुए अरुण देव ने कहा कि कविता का भविष्य संभावानाओं से भरा
हुआ है, तकनीकि ने कविता के क्षेत्र को
विस्तार दिया है. समीर जी ने कहा कविता संस्कारों में घुली होती है, घर, परिवार मुहल्लों से होती हुई विस्तृत हो जाती है.
समीर जी की कहन को सार्थक करती कविता की दहलीज़
पर दृढ़ता से पाँव रखने वाली वल्लरी नवयुवकों से कविता के पास जाने की बात पर
ज़ोर देती दिखी.
अहमदाबाद में अपनी
तरह का ऐसा पहला कार्यक्रम था "खुले में रचना" जिसे भरपूर सराहना
मिली. कार्यक्रम में बाहर से आये अरुण देव, लीना मल्होत्रा राव, महेश वर्मा के अतिरिक्त
डॉ० प्रभा मजुमदार, डॉ० अंजना संधीर, डॉ. द्वारका प्रसाद सांचीहर, श्री परिहार जी,
श्री मुकेश श्रीवास्तव, सुश्री वल्लरी एवं
संघमित्रा आदि स्थानीय साहित्य प्रेमियों ने इस चर्चा में भाग
लेकर कार्यक्रम को सफल बनाया.
विष्णु नागर जी की
एक छोटी सी कविता के साथ इस सत्र को विश्राम देती हूँ-----
तुम्हें हँसते देख
मन में एक दुष्ट ख़याल आया
तुम रोते हुए , कैसी
लगोगी
तुम फिर भी
हँसती रहीं.
अगले दिन की काव्य
संध्या ओ.एन.जी.सी. के ‘आगार” प्रेक्षागृह में संपन्न हुई. हिंदी समिति के उपाध्यक्ष श्री टी आर
मिश्रा जी ने सभागार में उपस्थित श्रोताओं को हिन्दी दिवस की शुभकामनाएँ दीं
और संस्थान प्रमुख श्री आर के शर्मा ने मुख्य अतिथि श्री नागर जी को पुष्प गुच्छ
देकर उनका स्वागत किया. वरिष्ठ ओ.एन.जी.सी. अधिकारियों एवं श्री विष्णु नागर जी के
द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ. श्री नागर जी ने
अध्यक्षीय भाषण में हिन्दी के विकास में मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा
कि मीडिया से हिंदी का विस्तार तो हुआ है किन्तु विकृतियाँ भी आयी हैं. हिन्दी में
अंगरेजी भाषा के शब्दों का प्रयोग सहजता से किया जा रहा है किन्तु दूसरी भाषाओं के
शब्दों का समावेश कम हुआ है, इसे बढ़ावा मिलना चाहिए, ताकि हिन्दी को और समृद्ध किया जा सके.
तदुपरांत मुद्रा
कला केंद्र अहमदाबाद के कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक आयोजन हुआ. गुजरात साहित्य अकादमी के महा-मात्र श्री हर्षद त्रिवेदी का कार्यक्रम में आगमन बाहर से
आये कवि- कवयित्रियों के लिए प्रेरणादायी रहा.
जहाँ एक तरफ लीना
मेहरोत्रा राव की कवितायेँ “बनारस में पिंड दान",“जात के जूते" और “मैं बची रहूंगी प्रेम
में" श्रोताओं को विगलित कर गईं, वहीँ सशक्त हस्ताक्षर की तरह प्रभा मजुमदार
की "अपने हस्तिनापुरों में" और "संवाद" कविताओं ने वैचारिक
हस्तक्षेप किया. छत्तीसगढ़ से आये युवा कवि महेश वर्मा की कविताओं में जीवन का
रसायन पारे की तरह अनुकूल जगह बनाता हुआ असीम प्रार्थनाओं का ज्योतिपुंज है, जिसमें जिजीविषा का स्वर मुखर होता है. स्थानीय
कवियत्री प्रतिभा पुरोहित ने कविताओं के माध्यम
से अपनी प्रतिभा का परिचय दिया.
अपर्णा मनोज की
कविताएँ संवेदनाओं के द्वार की सांकल हैं जो खुलते ही "पुराने शीशे"
और "स्त्री" की बुनावट में आकार लेने लगती हैं. छोटी-छोटी चीजों
को एक विशेष दृष्टि से देखने की क्षमता रखने वाले,
अरुण देव ने एक अच्छी बात कही, जिसे मैं उद्धृत करना ज़रूरी समझती हूँ. उन्होंने ओ.एन.जी.सी. अधिकारियों
को संबोधित करते हुए कहा कि कवि हृदय से कविता निकालता है और आप सब जमीन से.
अरुण देव की “लालटेन”, “बेरोजगार पिता”,“नई शुरुआत”, एवं “सीख” आदि कविताओं ने सभा को स्तब्ध कर दिया. धीरे-धीरे मन में उतरती यह कविताएँ देर तक अपना असर बनाये रहीं. प्रेम कविता "काश" ने वातावरण को प्रेममय बना दिया. कार्यक्रम का संचालन कर रहे सईद अयूब ने अरुण देव के कवितापाठ से बने माहौल का लाभ उठाने की बात कहते हुए कुछ शेर और “तुम मेरे लिए हो” कविता से सभी का दिल जीता. श्री टी आर मिश्रा जी ने ग्राम्य पृष्ठ भूमि से प्रेरित कविता का पाठ किया. उनकी परंपरागत सीख देती कविता “रहो चार कदम दूर” ने सभी का भरपूर मनोरंजन किया.
प्रसिद्ध कवयित्री और कथाकार सुमन केशरी जी मिथकों को आधुनिकता के उस भूखंड पर लाकर खड़ा कर देती हैं, जहां भावों की मखमली दूब बिछी है.."सूरज की ऐन नाक के नीचे, उसने अपना घर बना ही लिया," एक औरत के होने, उसकी अस्मिता का उद्घोष हैं सुमन जी की कविताएँ. सुमन जी की कविताएँ श्रोताओं द्वारा खूब पसन्द की गईं.
श्री
समीर वरण नंदी ने बिना लाग लपेट के कविताओं के माध्यम
से श्रोताओं से सीधा संवाद करते हुए सरकारी तंत्र पर प्रहार किया. "आरुशी"
जैसी संवेदनशील कविता ने श्रोताओं के मर्म को छू लिया. वहीँ "लोभी"
ने समाज में हो रहे अनाचार की ओर ध्यान दिलाते हुए सुधार की संभावनाओं पर बल दिया.
विष्णु नागर जी की रचनाएँ “सिस्टम”, “गधा” आदि ने श्रोताओं को सम्मोहित कर लिया. उनकी कविताओं का मुहावरा जितना नया है उतना ही जन-जीवन के समीप भी, इसलिए छोटे-छोटे विषय भी उनकी कविताओं में पूर्ण सम्प्रेषण के साथ कभी व्यंजना में तो कभी अभिधा में अपनी बात कहते हैं.
कार्यक्रम के अंत
में उप महा प्रबंधक (मां.सं.) एवं राजभाषा अधिकारी श्री एस. वेलचामी, आगार अध्ययन संस्थान, ओ एन जी सी, अहमदाबाद ने कार्यक्रम की अनापेक्षित सफलता के लिए सभी का आभार
व्यक्त किया. उनकी मीठी हिन्दी ने सभी अतिथियों का मन मोह लिया.
संचालक सईद अय्यूब
और ओ.एन.जी.सी. के मुख्य भौमिकी अधिकारी श्री मुकेश श्रीवास्तव के प्रयासों से
अहमदाबाद में ओ.एन.जी.सी. के तत्त्वावधान में दिनांक १३ सितम्बर और दिनांक १४
सितम्बर को क्रमश: सेमीनार एवं काव्य-पाठ सफलतापूर्वक संपन्न हुआ. दोनों कार्यक्रम सईद अय्यूब और अपर्णा मनोज के अथक प्रयासों से ही संभव हुए. बड़े ही अपनापन और लगाव से अपर्णा ने कवि मित्रों की देखरेख की. घर की जिम्मेदारिओं के साथ इस बड़े आयोजन का बीड़ा उठाना
और उसे सफलतापूर्वक सम्म्पन करा ले जाने की उनकी क्षमता काबिले तारीफ है. इसके साथ ही एन. डी. पाण्डेय का आत्मीय सहयोग रहा.
अरुण जी की कविता
"लालटेन की कुछ पंक्तियों के साथ शुभकामनाएँ.
अभी भी वह बची है
इसी धरती पर
अँधेरे के पास विनम्र बैठी
बतिया रही हो धीरे –धीरे
सयंम की आग में जैसे कोई युवा भिक्षुणी
कांच के पीछे उसकी लौ मुस्काती
बाहर हँसता रहता उसका प्रकाश
जरूरत भर की नैतिकता से बंधा.